Best Urdu Poems In Hindi
Poems are a form of literary expression that use aesthetic and rhythmic qualities of language—such as phonaesthetics, sound symbolism, and metre—to evoke meanings in addition to, or in place of, the prosaic ostensible meaning.
History: Poetry is one of the oldest forms of literature, with roots tracing back to ancient civilizations. Early examples include the “Epic of Gilgamesh,” ancient Greek epics like “The Iliad” and “The Odyssey,” and the Indian “Rigveda.”
Modern Poetry: Today, poetry continues to evolve, embracing diverse voices and experimenting with new forms and digital platforms. Contemporary poets often address current issues such as identity, race, gender, and technology, making poetry a dynamic and ever-relevant art form.
- Meter: The rhythmical pattern of a poem, determined by the number and types of stresses, or beats, in each line.
- Rhyme: The repetition of similar sounding words, often at the end of lines.
- Imagery: Descriptive language that appeals to the senses, creating vivid mental pictures.
- Symbolism: The use of symbols to represent ideas or qualities beyond their literal sense.
- Theme: The central idea or underlying message of the poem.
Purpose: Poetry can serve various purposes, including:
- Emotional Expression: Conveying deep feelings and personal experiences.
- Storytelling: Narrating events, myths, and legends.
- Social and Political Commentary: Reflecting on societal issues and advocating for change.
- Aesthetic Enjoyment: Providing pleasure through the beauty of language and form.
Notable Poets:
- William Shakespeare: Renowned for his sonnets and plays.
- Emily Dickinson: Known for her innovative use of form and syntax.
- Robert Frost: Famous for his depictions of rural life and exploration of complex social and philosophical themes
About Mother Quotes In Urdu
वो जो हममें तुममें क़रार था, तुम्हें याद हो के न याद हो
वही यानी वादा निभाह का, तुम्हें याद हो के न याद हो
वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे पेशतर, वो करम के था मिरे हाल पर
मुझे सब है याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद हो के न याद हो
वो नए गिले, वो शिकायतें, वो मज़ाक़-ए-बात-ए-बात पर
वो हर इक बात पे रूठना, तुम्हें याद हो के न याद हो
कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हम से तुम से भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आशना, तुम्हें याद हो के न याद हो
वो जो हमने बात-बात पर, किया था जो इश्क़ इज़हार
वो बयान हो गया बेअसर, तुम्हें याद हो के न याद हो
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से ना टपका तो फिर लहू क्या है
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन
हमारी जेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है
हुआ है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता
वगर्ना शहर में ‘ग़ालिब’ की आबरू क्या है
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले
कभी तो सुब्ह तेरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सरे काकुल से मुश्कबार चले
बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही
तुम्हारे नाम पे आएंगे ग़मगुसार चले
जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ
हमारे अश्क तेरी आक़बत सँवार चले
हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूँ की तलब
गिरेबाँ चाक, गिरेबाँ से नंग-ए-पार चले
मकान-ए-फ़ैज़ कोई राह में जचा ही नहीं जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यों
रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यों
देर नहीं हरम नहीं दर नहीं आसमां नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम ग़ैर हमें उठाए क्यों